माँ की दिनचर्या

Author(s): आयुष

सुबह के तीन बज कर पचास मिनट हो चुके हैं,
सैमसंग के बटन वाले
फ़ोन पर बज रहा है अलार्म।
ध्वनि गूँज रही है पूरे कमरे में।
ध्वनि गूँज रही है पूरे मकान में।
ध्वनि को गली के कोने से भी सुना जा सकता है,
सुबह शांती रहती है चारो ओर,
इतनी सुबह कोई नहीं उठता
सिवाय मेरी माँ के।

तकिये पर सिर गड़ाये,
बिना आँखों को खोले,
मैंने बंद कर दिया वो अलार्म
जो माँ ने लगाया था इसलिए कि
अगर गलती से उनकी नींद न खुले अपने आप
तो फ़ोन की घंटी से वो उठ पाएं
और शुरू करे अपनी दिनचर्या।

माँ की दिनचर्या क्या होती है?

मैं सो गया वापस उसी तकिये में सिर गड़ाये,
माँ ने उठ कर ब्रश किया,
नहाया,
कपड़े धोये,
घर बहारा,
गमलो में लगे पौधों से फूल तोड़े,
चावल भिगोया,
सब्जी काटे,
आटा गूँधा,
मसाले तैयार किये।
पलकें झुकती रहीं उनकी नींद से
उन्होंने अपना चेहरा धोया
हाँसू पर प्याज़ काटे,
आँसुओं को रोका,
और रोटी बेलते बेलते उन्होंने 
मुझे आवाज़ दी किचन से 
कि नालायक अब तो उठ जाओ।

नालायकों को स्कूल भेजने के बाद,
माँ तैयार होने लग गयीं खुद स्कूल जाने के लिए,
बच्चों को पढ़ाने के लिए,
रोटी कमाने के लिए।

माँ अब एक शिक्षिका हैं।
उन्होंने उठाई है चाक
और लिखना शुरू किया है ब्लैकबोर्ड पर
कभी पाइथागोरस थ्योरम
तो कभी केमिस्ट्री के एक़ुएशन्स,
कभी फ़्रांस की क्रांति
तो कभी संगीत के सुर।
माँ जून की गर्मी में
दिसंबर की ठण्ड में
सितम्बर की बरसात में
मई की आँधी में
पढ़ाती रहीं निरंतर,
बिना रुके,
बिना थके
सैकड़ों बच्चों को।

शाम के साढ़े चार बज चुके हैं,
माँ के बेटे इंतजार कर रहें हैं कि
कब माँ घर आएँगी
और कब वे माँ से पूछ कर क्रिकेट खेलने के लिए
बाहर दौड़ लगायेंगे।
माँ रास्ते में हैं,
बच्चे फ़ोन पर फ़ोन कर रहें हैं,
माँ कह रहीं हैं कि बस बीस मिनट और ,
माँ सब्जी वाली से भिन्डी के दो रूपए 
कम कराने के लिए मोल भाव कर रहीं हैं,
बच्चे धीरज खो रहें हैं।
माँ शांत हैं।

माँ ने चौखट के इस ओर कदम रखा ही था कि
बच्चे दौड़ पड़े बैट लेकर बाहर।
माँ ने कंधो से पर्स और हाथ से झोले को रखा जमीन पर,
बच्चों के जूतों को सीधा किया,
उनके यूनिफार्म को बाल्टी में डाला,
उनके बैग को रैक पर रखा
अपने माथे के पसीने को पोछा
अपने कपड़े बदले,
मुह धोया
और फिर चली गयी किचन के अंदर
जहाँ रखें हैं सुबह से
इस्तेमाल किये गए
सारे जूठे बरतन।

बरतन धोने के बाद,
माँ आकर बैठ गयीं हैं बालकनी में,
गर्मी से तर बतर,
बिना लाइट के,
हाथों में प्लेट लिए।
और तब जाकर 
माँ ने लिया है आज दिन का 
पहला निवाला।

माँ ने खाया है आज
सुबह की बनी दाल,
सुबह की बनी चावल,
और एक रोटी।
माँ को कोई गम नहीं है कि
बच्चों ने माँ के लिए सब्जी नहीं छोरी।

बच्चे लौट गए हैं खेल कर,
माँ घर बहार रहीं हैं।
बच्चे पढ़ने बैठ गए हैं,
माँ सब्जी काट रहीं हैं,
बच्चे पढ़ रहें हैं,
माँ आटा गूँध रही हैं,
बच्चे पढ़ रहे हैं,
माँ मसाले तैयार कर रहीं हैं।
बच्चे टीवी पर मैच देखते देखते खा रहे हैं
माँ रोटी बेल रहीं हैं,
बच्चे खा कर हाथ धो रहे हैं,
माँ गिलास में बच्चों के लिए दूध निकाल रहीं हैं
बच्चे सो रहे हैं
माँ बरतन धो रहीं हैं,
बच्चे सो रहे हैं
माँ पढ़ने बैठ गयीं है,
बच्चे सो रहे हैं,
माँ अपनी पीएचडी की थीसिस लिख रहीं हैं,
बच्चे सो रहे हैं,
माँ कल क्या पढ़ाना है वो पढ़ रहीं हैं,
बच्चे सो रहे हैं
माँ स्कूल से लायी कॉपी चेक कर रहीं हैं,
बच्चे सो रहे हैं,
माँ महीने के खर्च का हिसाब लगा रहीं हैं,
बच्चे सो रहे हैं,
माँ अकेले बिना आवाज़ किये रो रहीं हैं,
बच्चे सो रहे हैं,
माँ लड़ रहीं हैं,
बच्चे सो रहे हैं,
माँ दीवार पर टँगी उस तस्वीर को देख कर उनसे ये पूछ रहीं हैं कि वो अकेले इतना सब कुछ कैसे कर पाएंगीं?
बच्चे सो रहे हैं,
माँ की पलके भी अब झुकने लगी हैं।
बच्चे सो रहे है,
माँ बिना खाये, कुर्सी पर ही बैठ,
हाथों में कलम लिए
दीवार पर सिर टिकाये
आज फिर सो गयीं हैं।

बच्चे सो रहे हैं।
माँ सो रहीं हैं।

अगले दिन सुबह के तीन बजकर पचास मिनट पर अलार्म फिर बजा,
मैंने उसे आधी नींद में फिर बंद किया,
माँ उठीं कुर्सी पर से,
ब्रश की,
और चली गयी फिर से कपड़े धोने,
सब्जी काटने,
मसाले तैयार करने,
बच्चों को पढ़ाने,
पीएचडी थीसिस लिखने,
बरतन धोने,
और बाजार से सब्जी लाने।

माँ की दिनचर्या क्या होती है?



आयुष