खार- कांटे
जिन राहों पर चलकर बेमंजिल रहूं
उन राहों पर चलकर है क्या फ़ायदा ?
मुसाफ़िर होश में रहे, राह में पत्थर ज़रूरी है,
खार ना जिनमें ऐसे राहों क्या फ़ायदा ?
अक्सर रह जाता है अंधेरा चराग तले,
खुद को रोशन ना कर पाए, ऐसे चरागो का क्या फ़ायदा।
जिंदगी जीने को फकत दो जून की रोटी काफ़ी है,
ईमान बिक जाए ऐसे सहारों का क्या फ़ायदा ?
निगाहें मुंतजिर है दीदार-ए-यार के लिए,
सुकून ना हो जिसमें ऐसे नज़ारों का क्या फ़ायदा ?
मोर नाचे, बिजली चमकी, बारिश भी हुई,
दिल सूखा रह जाए ऐसे बहारों का क्या फ़ायदा ?